आज हम चर्चा करने जा रहे है गृहस्थ के खास धर्म के बारे में-------
प्रारब्ध पहले रचा , पीछे रचा सरीर।
तुलसी चिंता क्यों करे, भज ले श्री रघुवीर।।
अर्थात ------- पहले पहल को बनाया बाद में शरीर को बनाया। तुलसी चिंता क्यों कर रहा है भगवान श्री राम को भजले फिर सब ठीक हो जाएगा।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ----- इन चारों आश्रमों की सेवा करना गृहस्थ का खास धर्म हैं; क्योंकि गृहस्थ ही सबका माँ बाप है, पालक है, संरक्षक है अर्थात गृहस्थ से ही ब्रह्मचारी, गृहस्थ , वानप्रस्थ और सन्यासी उत्पन्न होते है और पालित और संरक्षित होते है। अतः चारों आश्रमों का पालन - पोषण करना गृहस्थ का खास धर्म है।
अथिति - सत्कार करना; गाय-भैंस, भेड़-बकरी आदि को सुख सुविधा देना; उन सबका पालन - पोषण करना गृहस्थ का खास धर्म है। ऐसे ही देवता , ऋषि-मुनि की सेवा करना, पितरों को पिण्ड-पानी देना, भगवान की विशेषता से सेवा करना ( भगवान का भजन और नाम जपना ) गृहस्थ का खास धर्म है।
आज के लिए विश्राम
जय महाकाल
नमश्कार जी
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