क्या संतान उत्पन्न किए बिना भी मनुष्य पितृ ऋण से टूट सकता है?
जी हां संतान उत्पन्न किए बिना भी मनुष्य पितृ ऋण से छूट सकता है| उस पर कोई भी ऋण नहीं रहता, अगर वह यह कार्य करे तो,
''देवर्षिभूताप्तनृणां पितॄणां न किङ्करो नायमृणी च राजन्।
सर्वात्मना यः शरणं शरण्यं गतो मुकुन्दं परिह्रत्य कर्तम्।।''
इसका अर्थ है, कि------
'' हे राजन्! जो सारे कार्यों को छोड़कर संपूर्ण रूप से शरणागत वत्सल भगवान् की शरण में आ जाता है, वह देव, ऋषि, प्राणी, कुटुंबीजन और पितृ गण इनमें से किसी का भी ऋणी और सेवक गुलाम आदि नहीं रहता। ''
मेरे इस ब्लॉक को इंग्लिश में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं
To read this blog in English open below link
http://pandit94.blogspot.in/?m=1
No comments:
Post a Comment