हमारा आज का विषय है कि क्या पितरों के नाम से दिया हुआ उन को मिल जाता है?
और इसी विषय के बारे में आज हम चर्चा करेंगे।
जी हां पितरों के नाम से जो कुछ दिया जाए वह सब उनको मिल जाता है। वह चाहे किसी भी योनी में क्यों ना हो उनके नाम से दिया हुआ पिंड-पानी उनको उसी योनि के अनुसार खाद्य जा पेय पदार्थ के रूप में मिल जाता है। जैसे पितर पशु योनि में हो तो उनके नाम से दिया हुआ अन्न उनको घास बनकर मिल जाएगा और देव योनि में हो तो अमृत बनकर मिल जाएगा। तात्पर्य यह है कि जैसी वस्तु से उनका निर्वाह होता है वैसे ही वस्तु उनको मिल जाती है।
जैसे हम जहां से अमेरिका में किसी को मनी आर्डर के द्वारा रुपए भेजते भेजें तो वे वहां डॉलर बनाकर उनको उसको मिल जाता है। ऐसे ही हम पितरों के नाम से पिंड-पानी देते हैं, दान पुण्य करते हैं, तो वह भी जिस योनि में पितर हैं उसी योनि के अनुसार खाद्य जा पेय पदार्थ के रूप में पितरों को मिल जाता है।
आज हमें बड़े आदर से जो रोटी कपड़ा आदि मिलता है, वह हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल भी हो सकता है, और हमारे पूर्व जन्म के पुत्र-पौत्र आदि को के द्वारा किए हुए श्राद्ध तर्पण का फल भी हो सकता है, पर है यह हमारा प्रारब्ध ही।
जैसे किसी ने बैंक में एक लाख रुपए जमा किए। उनमें से उसने कुछ अपने नाम से, कुछ पत्नी के नाम से और कुछ पुत्र के नाम से जमा किए, तो वह अपने नाम से जमा किए हुए पैसे ही निकाल सकता है, अपनी पत्नी और पुत्र के नाम से जमा किए हुए पैसे नहीं। वे पैसे तो उसकी पत्नी और पुत्र को ही मिलेंगे। ऐसे ही पितरों के नाम से जो पिंड-पानी दिया जाता है वह पितरों को ही मिलता है हमें नहीं। हां हम जीते-जी गया में जाकर अपने नाम से पिंड-पानी देंगे तो मरने के बाद वह हमें ही मिल जाएगा। गया में तो पशु पक्षी के नाम से दिया हुआ पिंड-पानी भी उनको मिल जाता है।
एक छोटी सी कहानी कहता हूँ सुनिए। - - - - - -
एक सज्जन का अपनी गाय पर पड़ा स्नेह था। वह गाय मर गई तो वह उसको स्वपन में बहुत दुखी दिखाई दी। उसने गया में जाकर उस गाय के नाम से पिंड-पानी दिया। फिर वह गाय स्वपन में बहुत ही प्रसन्न दिखाई देने लगी।
जैसे हमारे पास एक तो अपना कमाया हुआ धन है और एक पिता, दादा, परदादा का कमाया हुआ धन है तो अपने कमाए हुए धन पर ही हमारा अधिकार है; पिता, दादा आदि के कमाए हुए धन पर हमारा उतना अधिकार नहीं है। वंश परंपरा के अनुसार पिता, दादा आदि के धन पर हमारे पुत्र पौत्रौ का अधिकार है। ऐसे ही पितरों को वंश परंपरा के अनुसार पुत्र पौत्रौ का दिया हुआ पिंड-पानी मिलता है। अतः पुत्र-पुत्रों पर पिता, दादा आदि के पिंड-पानी देने का दायित्व है।
एक पितृलोक भी है, पर मरने के बाद सब पितृ लोक में ही जाते हो------- यह कोई नियम नहीं है। कारण कि अपने अपने कर्मों के अनुसार ही सब की गति होती है।
।। नमस्कार ।।
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