Sunday, 30 April 2017

शास्त्रों के अनुसार गृहस्थ के ऋण???

शास्त्रों के अनुसार पांच ऋण बताये गए है -----
जो कि इस प्रकार हैं,
पितृऋण, देवऋण, ऋषिऋण , भूतऋण और मनुष्यऋण।
                   इनमें से पितृ ऋण क्या है और उससे छूटने का क्या उपाय है, चलिए जानते है।
माता-पिता, दादा-दादी, परदादा-परदादी, नाना-नानी, परनाना-परनानी आदि के मरने पर जो कार्य किए जाते हैं, वह सब 'प्रेतकार्य हैं ' और परंपरा से श्राद्ध-तर्पण करना पिंड-पानी देना आदि जो कार्य पितरों के उद्देश्य से किए जाते हैं, वे सब 'पितृकार्य' हैं। मरने के बाद प्राणी देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी,भूत-प्रेत, वृक्ष-लता आदि किसी भी योनि में चला जाए तो उसकी 'पितर' संज्ञा होती है।
                      माता पिता के राज्य वीर्य से शरीर बनता है। माता के दूध से और पिता के कमाए हुए अन्न से शरीर का पालन पोषण होता है, पिता के धन से शिक्षा एवं योग्यता प्राप्त होती है। माता पिता के उद्योग से विवाह होता है। इस तरह पुत्र पर माता-पिता का, माता-पिता पर दादा-दादी का और दादा दादी पर परदादा परदादी का ऋण रहता है। परंपरा से रहने वाले इस पितृऋण से मुक्त होने के लिए, पितरों की सद्गति के लिए उनके नाम से पिंड-पानी देना चाहिए। श्राद्ध तर्पण करना चाहिए।
                                                     पुत्र जन्म भर माता-पिता आदि के नाम से पिंड-पानी देता है, पर आगे पिंड-पानी देने के लिए संतान उत्पन्न नहीं करता तो वह पितृऋण से मुक्त नहीं होता अर्थात् उस पर पितरों का ऋण रहता है, परंतु संतान उत्पन्न होने पर उस पर पितृऋण नहीं रहता, इसके कारण वह पितृऋण संतान पर आ जाता है। पितर पिंड-पानी चाहते हैं; अतः पिंड-पानी मिलने से वे सुखी रहते हैं और ना मिलने पर वे दुखी हो जाते हैं। पुत्र की संतान न होने पर वे भी दुखी हो जाते हैं कि आगे हमें पेंट पानी कौन देगा?

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