Wednesday, 16 May 2018

अधिक मास | पुरुषोत्तम मास | मलमास | क्या करें और क्या ना करें? | मास निर्णय | मास का अभिप्राय | फल |

इस साल 12 नही 13 महीने है। यह महीने जनवरी आदि नही है यह चैत्र आदि महीने है। जिसे हम हिन्दूयों में देसी महीने कहते है। और इस 13वे महीने को अधिक मास कहते है। जिसे पुरषोत्तम मास भी कहते है। तो इस मास में क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए और इस अधिक मास का क्या फल रहने वाला है?

यह जो विक्रम संवत 2075 विरोधकृत नाम का है, उसमे चांद्र ज्येष्ठ मास अधिक मास होगा। इस चांद्र मास की कालावधि 16 मई, बुधवार से 13 जून, बुधवार तक रहेगी।

अधिक मास निर्णय -
यस्मिन् मासे न संक्रान्तिः, संक्रान्ति द्वयमेव वा।
मलमासः स विज्ञेयो मासे त्रिंशत्तमे भवेत।।

सूर्य-सिद्धान्त, सिद्धान्त-शिरोमणि, ब्रह्म-सिद्धान्त आदि सिद्धान्तिक ग्रंथों के अनुसार जिस चांद्र-मास में सूर्य-सक्रांति का अभाव हो, अथवा दो संक्रांति हो, उस चांद्र मास को अधिक मास कहते है। जिसमे 30 दिन होते है।

सिद्धान्त-शिरोमणि के अनुसार -
असंक्रान्तिमासोऽधिमासः स्फुटः स्यात्,
द्विसंक्रान्ति मासः क्षयाख्यः कदाचित्।
अर्थात लोक व्यवहार में संक्रांति से रहित मास को 'अधिक मास' के अतिरिक्त अधि-मास, मलमास व आध्यात्मिक विषयो में अत्यन्त पुण्यदायी होने के कारण 'पुरषोत्तम-मास' आदि नामों से जाना जाता है।
ज्योतिष गणना के अनुसार एक सौर वर्ष 365 दिन, 6 घण्टे और 11 सैकिंड का होता है, जबकि एक चांद्र वर्ष 354 दिन और लगभग 9 घण्टे का होता है। सौर वर्ष और चांद्र वर्ष तथा सौर मास और चांद्र मास में सामंजस्य स्थापित करने के लिए भारतीय शास्त्रकारों द्वारा 'अधिक-मास' की परिकल्पना अथवा व्यवस्था की गई है। पुरुषार्थ चिंतामणि के अनुसार एक अधिक मास में दूसरे अधिक अर्थात मल मास तक की अवधि अर्थात पुनरावृत्ति 28 मास से लेकर 36 मास के भीतर होना संभव है। इस प्रकार हर तीसरे वर्ष में अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास की पुनरावृत्ति होना संभव है।
अधिक या मलमास का अभिप्राय - मलमास का मतलब निंदित और वर्जित करने योग्य मास नही, अपितु मनुष्य के निन्दनीय पाप कर्मों को प्रवाहित गंगाधारा में धो डालने वाला मास ही 'मलमास' कहलाता है, क्योंकि इस मास को भगवान विष्णु ने स्वयं अपना नाम 'पुरुषोत्तम' देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूँ और इसका नाम समस्त जगत में पवित्र होगा तथा मेरी सादृश्यता को प्राप्त करके यह मास अन्य सब मासों का अधिपति होगा। यह जगत में पुज्य और जगत में वन्दनीय होगा। पुरुषोत्तम मास में प्रतिदिन स्नान, दान, जपादि करने से लोगों के दुख, शोक, पाप और दारिद्रय का निवारण हो जाता है तथा नियमपूर्वक संयमित रहकर भगवान की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने से आलौकिक आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है तथा मृत्यु के बाद किसी प्रकार की अधोगति का भय नही रहता। अधिक मास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्तिपूर्वक व्रत, उपवास, श्रीविष्णु पूजन, पुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ, दान आदि शुभ कर्म करता है, वह मनोवांछित फल प्राप्त करता है और अंत मे गोलोक पहुँचकर भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करता है।
विक्रम संवत 2075 में प्रथम ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा के अनुसार 16 मई, बुधवार से ज्येष्ठ अधिक मास शुरू होकर 13 जून, बुधवार तक व्याप्त रहेगा। प्रथम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष और द्वितीया कृष्ण पक्ष- दोनों पक्षों के अंतराल में किसी संक्रान्ति का अभाव होने से ज्येष्ठ मास ही अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास माना जाएगा। शास्त्रों में ज्येष्ठ अधिक मास का फल इस प्रकार से वर्णित है -
ज्येष्ठद्वये नृपध्वंसो-धान्यानिक्षितिसत्तमे।
अर्थात जिस वर्ष दो ज्येष्ठ मास आये, तो उस वर्ष राष्ट्राध्यक्षों में परस्पर टकराव होते है। किसी विशिष्ट गणमान्य राजनेता के निधन और अपदस्थ होने के योग है, अथवा कही शासन परिवर्तन हो सकता है। कही उपद्रव और हिंसक घटनाएं घटित होंगी। बारिश अच्छी होगी जिससे धान्य आदि फसलों का उत्पादन अच्छा होगा। प्रजा में रोग से कष्ट होगा, परन्तु यज्ञ और दान आदि अधिक होंगे, जिससे सुख प्राप्त होगा।
पुरुषोत्तम मास में क्या करें? -
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजन आदि किये जाते है, उन सबका अक्षय फल होता है और व्रती के सब अनिष्ट नष्ट हो जाते है। पुराणों में शास्त्रकारों ने सभी पाप हरने वाले अधिमास काल मे व्रत, उपवास, पूजन, दान आदि के संबंध में विभिन्न प्रकार के विधान बतलाये है। हेमाद्रि के अनुसार पुरुषोत्तम मास आरंभ होने पर प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत होकर एकभुक्त अर्थात दिन में 1 बार भोजन या नक्तव्रत रखकर भगवान विष्णु के स्वरूप सहस्रांशु (भास्कर/सूर्य) का मंत्रो द्वारा लालपुष्प सहित पूजन और स्तोत्र पाठ करके कांस्य पात्र में भरे हुए अन्न, फल, वस्त्र आदि का दान किया जाता है। पूजन के बाद अथवा अधिक मास के अंतिम दिन विविध प्रकार के घी, गुड़ और अन्न का दान करे तथा घी, गेहू और गुड़ के 33 पुए बनाये और इनको पात्र में रखकर और फल, मिष्ठान, वस्त्र, दक्षिणा सहित दान कर इन मंत्रों को पढ़े -
"ॐ विष्णुरूपी सहस्रांशुः सर्वपापप्रणाशनः।
अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु।।"
और इसके बाद इस मंत्र से भगवान विष्णु को प्रार्थना करें -
"यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम्।
शंखः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु।।
इसके अतिरिक्त ज्येष्ठ मास में प्रतिदिन श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य का पाठ एक निश्चित समय पर श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। इस मास में श्रीविष्णु स्तोत्र, श्रीविष्णु सहस्रनाम स्तोत्र, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त आदि स्तोत्रों का पाठ करना शुभ होगा। अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास का पाठ और मंत्रो का पाठ करते हुए गुड़, गेहू, घी, वस्त्र, मिष्ठान, दाख, केले, कुष्मांड(कुम्हड़ा), ककड़ी, मूली आदि वस्तुयों का दान कर, दक्षिणा सहित करके भगवान को 3 बार अर्घ्य दे और भगवान के इन 33 नामों को पढ़े -
1 विष्णुं, 2 जिष्णुं, 3 महाविष्णुं, 4 हरिं, 5 कृष्णं, 6 अधोक्षजम् 7 केशवं, 8 माधवं, 9 रामं, 10 अच्युत्यं, 11 पुरुषोत्तमम्, 12 गोविन्दं, 13 वामनं, 14 श्रीशं, 15 श्रीकृष्णं, 16 विश्वसाक्षिणं, 17 नारायणं, 18 मधुरिपुं, 19 अनिरुद्धं, 20 त्रिविक्रमम्, 21वासुदेवं, 22 जगद्योनिं, 23 अनन्तं, 24 शेयशायिनम्, 25 सकर्षणं, 26 प्रधुम्नं, 27 दैत्यरिं, 28 विश्वतोमुखं, 29 जनार्दनं, 30 धरावासं, 31 दामोदरं, 32 मघार्दनं, श्रीपतिं च।।

अधिक मास में त्याज्य कर्म/ कार्य - गर्गाचार्य के अनुसार - अग्न्याधेयं प्रतिष्ठां च यज्ञो दानव्रतानि च।
वेदव्रतवृषोत्सर्ग चूडाकरणमेखलाः।।
गमनं देवतीर्थानां विवाहमभिषेचनम्।
यानं च गृहकर्माणि मलमासे विवर्जेयत्।।

अधिमास में फल प्राप्ति की कामना से किए जाने वाले सभी काम वर्जित है और फल की आशा से रहित होकर करने के सभी आवश्यक काम किये जा सकते है। ज्योतिष आचार्यों के मतानुसार अधिक मास में कुछ नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्मो को करने का निषेध माना गया है। जैसे - विवाह, यज्ञ, देव-प्रतिष्ठा, महादान, चूड़ाकर्म(मुंडन), पहले कभी न देखे हुए देवतीर्थो में गमन, नवगृह-प्रवेश, वृषोत्सर्ग, भूमि आदि संपत्ति की खरीद(क्रय), नई गाड़ी का क्रय आदि शुभ कर्मों का आरंभ अधिक मास काल मे नही करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त अन्य अनित्य व अनैमित्तिक कार्य जैसे - नववधू प्रवेश, नव यज्ञोपवीत धारण, व्रतोद्यापन, नव अलंकार, नवीन वस्त्र आदि धारण करना, कुआँ, तालाब, बाबली, बाग आदि का खनन करना, भूमि, वाहन आदि का क्रय करना, काम्य व्रत का आरम्भ, भूमि, सुवर्ण, तुला, गाय आदि का दान, अष्टका श्राद्ध, उपनयन संस्कार, द्वितीया वार्षिक श्राद्ध, उपाकर्मादि कर्मों के संपादन का निषेध माना गया है।

अधिक (पुरुषोत्तम) मास में करणीय कर्म -

आवश्यकर्म मासाख्यं मलमासमृताब्दिकम्।
तीर्थेभच्छाययोः श्राद्धमाधानाङ्ग पितृक्रियाम्।।

 अधिक मास में जिस काम्य कर्म के प्रयोग का आरंभ अधिक मास से पहले ही हो चुका हो, उसकी संपूर्ति अधिक मास में विहित है। मलमास में मरने वाले का वार्षिक श्राद्ध, मासिक श्राद्ध, पितरों की क्रिया करना, तीर्थ व गजच्छाया श्राद्ध, यदि कोई श्राद्ध मलमास के मध्य आ रहा हो, तो वह श्राद्ध एक मास का अधिक ही श्राद्ध होगा। अर्थात जिस मास में यह प्राप्त होता है, उसकी द्विरावृति होती है। यदि मलमास में ही किसी की मृत्यु हो, तो उससे जो 12वाँ मास हो, उसमें प्रेतक्रिया को समाप्त करना चाहिए। तीव्र ज्वर(बुख़ार) या प्राणघातक रोग आदि की निवृत्ति के लिए रुद्र पूजादि अनुष्ठान, पुत्र/संतान के जन्म के बाद अन्नप्राशन, गंडमूल, जन्मदिन पूजन संबंधी आवश्यक (दिन-निर्धारित) कर्म, कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों के प्रयोग, नित्य पूजा-जप-दान आदि कर्म अथवा ग्रहण संबंधी श्राद्ध, दान, जप आदि किये जा सकते है।

सीधे शब्दों में कहे तो, जो कर्म प्रतिदिन किये जाते हैं और आवश्यक है उन्हें मलमास में किया जा सकता है। और जो काम अनावश्यक है और प्रतिदिन नही किये जाते है उन्हें मलमास में नही किया जा सकता। और इस माह में बुरे कार्यो को नही करना चाहिए।

https://youtu.be/ch0s2GRudmw


No comments:

Post a Comment